शिखा श्रेया/रांची. झारखंड में टैलेंट की कमी नहीं है. इन प्रतिभाशाली युवाओं के काम की सिर्फ देश में ही नहीं, विदेशों में भी तारीफ हो रही है. ऐसे ही एक युवा फिल्मकार हैं रांची के मारवाड़ी कॉलेज से पढ़े सतीश मुंडा, जिनकी फिल्म जादूगोड़ा को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है. अफ्रीका के रियो डी जेनेरियो में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में सतीश मुंडा की फिल्म को बेस्ट शॉर्ट फिक्शन फिल्म का अवार्ड मिला है.
सतीश मुंडा की फिल्म जादूगोड़ा उन गांववालों की पीड़ा को दिखाती है, जो यूरेनियम के रेडिएशन से पीड़ित हैं. लोकल18 से बातचीत में सतीश बताते हैं कि उनके मित्र रूपेश साहू ने यह कहानी सुनाई थी. वे जादूगोड़ा के बारे में जानते तो थे, लेकिन इस कहानी का प्लॉट थोड़ा अलग था, इसलिए उन गांवों में जाकर लोगों का दर्द समझने की इच्छा हुई. सतीश बताते हैं कि जादूगोड़ा में यूरेनियम की वजह से लोग बीमार और प्रताड़ित हैं. यह काफी संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए फिल्म बनाने की योजना बनाई.
दुनियाभर में मिल रही है प्रशंसा
सतीश ने बताया कि जादूगोड़ा पर अब तक कई डॉक्यूमेंट्री फिल्म बन चुकी है. लेकिन अभी तक कोई फिक्शन फिल्म नहीं बनी. फिक्शन में थोड़ा इंटरटेनमेंट का भी तड़का होता है. इससे मुद्दे आसानी से लोगों की समझ में आते हैं. सतीश ने कहा कि लोग इसे पसंद कर रहे हैं. इसे कई जगह दिखाया गया है, जहां फिल्म की कहानी को तारीफ मिली है. रियो डी जेनेरियो में मिले अवार्ड के अलावा सैमुअल लॉरेंस फाउंडेशन की तरफ से भी सतीश मुंडा को इस फिल्म के लिए बेस्ट यंग फिल्ममेकर अवार्ड से नवाजा गया है. फिल्म के मुख्य किरदार में बॉलीवुड एक्टर हरीश खन्ना, झारखंड के चंदा मेहरा, संतोष मृदुल और महादेव टोप्पो जैसे अभिनेता शामिल हैं.
पिता चलाते हैं राशन की दुकान
सतीश मुंडा मूल रूप से रामगढ़ के कुवर टोला के रहने वाले हैं. उनके पिता गणेश मुंडा राशन की दुकान चलाते हैं और मां होम मेकर हैं. रामगढ़ हाईस्कूल से शुरुआती पढ़ाई के बाद वे रांची आ गए, जहां मारवाड़ी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद पुणे स्थित फिल्म्स एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से उन्होंने सिनेमा निर्माण की बारीकियां सीखीं. सतीश ने लोकल18 को बताया कि उनका बचपन से ही सपना था कि बड़े होकर फिल्मकार बनें. जादूगोड़ा जैसी फिल्म बनाने से यह सपना पूरा हुआ है.
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FIRST PUBLISHED : June 7, 2024, 13:15 IST