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Monday, July 8, 2024

Kartik Aaryan Chandu Champion Review Rating Update | Murlikant Petkar | मूवी रिव्यू, चंदू चैंपियन: पर्दे पर चैंपियन बनकर उभरे कार्तिक आर्यन; करियर बेस्ट परफॉर्मेंस, कहानी प्रेरणादायक, डायरेक्शन भी बेहतर; बस लेंथ खटक सकती है Ibomma


मुंबई5 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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Kartik Aaryan Chandu Champion Review Rating Update | Murlikant Petkar | मूवी रिव्यू, चंदू चैंपियन: पर्दे पर चैंपियन बनकर उभरे कार्तिक आर्यन; करियर बेस्ट परफॉर्मेंस, कहानी प्रेरणादायक, डायरेक्शन भी बेहतर; बस लेंथ खटक सकती है Ibomma

कार्तिक आर्यन की फिल्म चंदू चैंपियन आज (14 जून) थिएटर्स में रिलीज हो गई है। यह फिल्म देश के पहले पैरालिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट मुरलीकांत पेटकर की लाइफ पर बेस्ड है। 2 घंटे 23 मिनट की लेंथ वाली इस फिल्म को दैनिक भास्कर ने 5 में से 4 स्टार रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी क्या है?
फिल्म की शुरुआत 1950 के दशक से होती है। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में एक लड़के मुरलीकांत पेटकर का जन्म होता है। उनका बचपन से एक ही सपना होता कि देश को ओलंपिक में मेडल दिलाना। वो दारा सिंह का फैन हैं, इसलिए पहलवानी करना शुरू करते हैं। हालांकि मुरली का पहलवानी करना उनके घर वालों को पसंद नहीं आता है। गांव के भी कुछ संभ्रांत लोग मुरली को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते हैं।

मुरलीकांत गांव से भाग जाते हैं। वो भागते हुए एक ट्रेन पर चढ़ जाते हैं। उस ट्रेन में मुरली को करनैल सिंह नाम का एक शख्स मिलता है, जो आर्मी जॉइन करने के लिए जा रहा होता है। वो मुरली को सलाह देता है कि अगर उन्हें ओलिंपिक में जाना है तो पहले आर्मी जॉइन कर ले। उसकी बात मानकर मुरली आर्मी जॉइन कर लेते हैं। कुछ समय बाद उन्हें पता चलता है कि ओलिंपिक में पहलवानी जैसा कोई खेल नहीं होता, इसलिए इससे मिलता जुलता कॉम्पिटिशन बॉक्सिंग में अपना ध्यान लगाते हैं। मुरलीकांत, अली सर (विजय राज) के अंडर में ट्रेनिंग स्टार्ट करते हैं। यही अली सर मुरली की सफलता में सबसे बड़ा रोल निभाते हैं।

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इसी बीच मुरलीकांत, करनैल सिंह और अली सर की पोस्टिंग कश्मीर में हो जाती है। यहीं से सब कुछ बदल जाता है। पाकिस्तान की सेना अचानक से हमला कर देती है। इस युद्ध में मुरलीकांत को 9 गोलियां लगती हैं, फिर भी वो बच जाते हैं। हालांकि उनका ओलंपिक जाने का सपना अधूरा लगने लगता है, क्योंकि उनका आधा शरीर पैरालाइज हो जाता है।

इसी बीच मुरलीकांत की मुलाकात दोबारा अली सर से होती है। अली सर मुरली के अंदर एक बार फिर से उम्मीद जगाते हैं। बॉक्सिंग न सही, वो मुरली को तैराकी में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस तरह मुरलीकांत पेटकर पैरालिंपिक में भारत की तरफ से हिस्सा लेने जाते हैं। हालांकि उनका सफर वहां भी आसान नहीं होता। आगे क्या होता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

कार्तिक आर्यन ने फिल्म में मुरलीकांत पेटकर का रोल निभाया है।

कार्तिक आर्यन ने फिल्म में मुरलीकांत पेटकर का रोल निभाया है।

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स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?
हमेशा कॉमिक और रोमांटिक रोल करने वाले कार्तिक आर्यन पहली बार किसी बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म में दिखे हैं। मुरलीकांत पेटकर के रोल में उनकी मेहनत साफ झलकती है। फिल्म में उनका एक्सप्रेशन और बॉडी लैंग्वेज कमाल का है।

अगर हम कहें कि यह कार्तिक के करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस है तो गलत नहीं होगा। कार्तिक के अलावा इस फिल्म में किसी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वो हैं विजय राज। एक सख्त ट्रेनर के रोल में वे लाजवाब लगे हैं। मुरलीकांत के दोस्त करनैल सिंह के रोल में भुवन अरोड़ा का काम भी शानदार है। ये वहीं भुवन अरोड़ा हैं, जो वेब सीरीज ‘फर्जी’ में शाहिद कपूर के दोस्त की भूमिका में देखे गए थे। फिल्म में राजपाल यादव और यशपाल शर्मा भी हैं। दोनों अपने किरदार में जमे हैं।

Kartik Aaryan Chandu Champion Review Rating Update | Murlikant Petkar | मूवी रिव्यू, चंदू चैंपियन: पर्दे पर चैंपियन बनकर उभरे कार्तिक आर्यन; करियर बेस्ट परफॉर्मेंस, कहानी प्रेरणादायक, डायरेक्शन भी बेहतर; बस लेंथ खटक सकती है Ibomma

फिल्म का डायरेक्शन कैसा है?
एक था टाइगर और बजरंगी भाईजान जैसी फिल्म बनाने वाले कबीर खान ने इसका डायरेक्शन किया है। उन्होंने स्टोरी को बिल्कुल इंटरेस्टिंग बनाए रखने की कोशिश की है। वॉर और बॉक्सिंग रिंग वाले सीक्वेंस को उन्होंने बहुत अच्छे से दिखाया है।

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सिनेमैटोग्राफी भी तारीफ के लायक है। 50-60 साल पहले देश कैसा रहा होगा, उसे पर्दे पर दिखाने में कामयाब भी हुए हैं। हां, फिल्म की लेंथ कुछ लोगों को थोड़ी अखर सकती है। कुछ लोग इसे स्लो भी करार दे सकते हैं।

कबीर खान (दाएं) ने फिल्म का डायरेक्शन किया है।

कबीर खान (दाएं) ने फिल्म का डायरेक्शन किया है।

कैसा है फिल्म का म्यूजिक?
फिल्म के गाने हर सीक्वेंस के हिसाब से ठीक बैठे हैं। कानों को चुभेंगे नहीं। हालांकि इतने भी बेहतर नहीं हैं कि याद रखे जाएं या इन्हें दोबारा सुना जाए।

फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं?
यह फिल्म आपको प्रेरणा देगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। जब आप थिएटर से निकलेंगे तो आपके अंदर कुछ कर गुजरने की चाहत होगी। इस फिल्म में एक ऐसे आदमी की कहानी है जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया था।

फिल्म के जरिए उस व्यक्ति की गौरव गाथा जानने का मौका मिलेगा। अगर आप ऐसी संजीदा फिल्मों के शौकीन हैं, तो बिल्कुल थिएटर जा सकते हैं। इसके अलावा अगर कार्तिक के फैन हैं तब तो आंख बंद करके जा सकते हैं।



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Arvind Kumar
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